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Maut kee Pehchan

She knows when the death comes

 

मौत की पहचान

 

बी.आर. राकसन

 

उस गाँव में एक लडकी है। उसका नाम है सुनीता। वह एक गरीब लडकी है। इस लिए वह पास के जंगल से लकिडयाँ बीनकर लाती है। फिर उनको बेचने से जो पैसा मलता है, उससे घर की चीजें खरीदकर लाती है। उसकी बूढी माँ बेटी के आने तक इंतजार करती और उसके आने के बाद खाना बनाने लगती है। जब खाना तैयार हो जाता, दोनों मलकर खाते हैं।

 

"सुनीता, तुमको राजकुमार जैसा लडका पसंद करेगा। तुम उससे शादी करके रानी की तरह जओगी।" उस की माँ हमेशा कहती है। स,नीता हँसने लगती है। इतनी गरीब लडकी को राजकुमार कहाँ से मिलेगा. वह सोचने लगती है।

 

"सुनीता, मेरे पास एक अंगूठी है। इसे पहनने वाले को मौत दिखाई देती है। उसे मालूम होता कि कौन जल्दी मरने वाला है। मुझे इससे कोई फायदा नहीं हुआ। बस इससे मैं समझ गई कि अब मेरी मौत कुछ ही समय होगी।"

 

जब एक दिन सुनीता की माता ने यह कहा तो सुनीता को आश्चर्य हुआ।


"सुनीता, मैं आइने में देखती हूँ तो मौत की देवी मेरे सिर पर मंडराती हुई दिखाई दे रही है। तुम भी देख लो।" इतना कहकर उसकी मैँ ने अंगूठी बेटी को दी।

 

बेटी ने अंगूठी पहन ली तो उसे उसकी माँ के सिर पर काले कपडों में मंडराने वाली मौत की देवी का दर्शन हुआ। तब उसकी माता ने उस अंगूठी के बारे में बताया।

 

"सुनीता, मैं एक बार लकडियाँ बीनने के लिए जंगल में गई। उस समय तुम छोटी बच्ची हो। रास्ते एक साधु महाराज प्यास से तरसने लगा तो मैं ने उपने पास का पानी का घडा उन्हें दे दिया। पानी पीकर साधु महाराज ने कहा कि मेरी लडकी महारानी बनेगी और इस अंगूठी से हमारा कल्याण होगा। उन्हों ने यह भी बताया कि इसे पहनने वाले को मौत का पता चलता है और इससे उसे क्या लाभ होगा, यह बताना मुश्किल है।" इतना कहकर सुनीता की माता चल बसी।

 

सुनीता अब अकेली हो गई। वह एक दिन पास के जंगल से गुजरने लगी तो एक साधु उसे दिखाई पडा। उसने ध्यान से देखकर सुनीता से कहा कि मौत मेरे पीछे आ रही है, उससे मेरा क्या रिश्ता है।

 

मैं घबडाकर उसकी ओर देखने लगा तो उसने बताया कि घबडाने की जरूरत नहीं है। जिसके पीछे मौत चलने लगती है, उसे भविष्य का ज्ञान होता है और वह जो कहे, वह जरूर हो जाएगा। उसने सुनीता से कहा कि वह पास के गाँव में जाकर बरगद के नीचे अपना निवास बना दे और लोगों की सेवा करे।

 

सुनीता को यह सब आश्चर्य सा लगा। वह पास के गाँव में जाकर, बरगद के नीचे बैठ गई। उसी समय वहाँ एक अमीर बूढा आदमी आया। उसके सिर पर मौत की देवी मंडरा रही थी। उस बूढे के साथ एक लडका भी था।

 

सुनीता ने उस लडके को अपने पास बुलाकर पूछा कि वह बूढा कौन है। लडके ने कहा कि वह उसका पिता है। तब सुनीता ने कहा कि थोडे समय में उसकी मौत होगी। यह सुनकर लडका घबडा गया। पिता के साथ दूसरे गाँव जाने का काम छोड दिया, घर पहुँचा। सब को यह बात कहने लगा तो लोग हँसने लगे। लेकिन वह बूढा थोडी ही देर में चल बसा।

 

जब लोगों को यह बात मालूम हुई तो लोग दौडकर सुनीता के पास आये। सुनीता ने कहा कि वक्त आने पर मौत के बारे में उसे मालूम होता है। लोगों ने उसे एक वशेष महात्मा जैसे मानने लगे। उसे वहीं रहने के लिए कहकर, उसके लिए एक छोटा सा आश्रम बनाकर उसके रहने का इंतजाम कर दिया।

 

लोग अपनी तकलीफों में सुनीता के पास आते तो सुनीता उन्हें कुछ न कुछ उपाय बताती है। इस से लोगों को मदद होने लगी। सुनीता का नाम आस पास के गाँवों में मशहूर होने लगा। सुनीता से सलाह लेने के लिए लोग कहीं-कहीं से आने लगे।

 

एक दिन आनंद नगर का जमींदार अपने बेटे के साथ सुनीता के पास आया। सुनीता एक सुंदर नौजवान लडकी है। उसे देखकर जमींदार सुदर्शनवर्मा को आश्चर्य हुआ। उसने अपने बेटे को दिखाकर कहा, "यह मेरा लडका प्रदीपवर्मा है। ज्योतिषों ने कहा कि इसकी मौत जल्दी हो जाएगी। इसे चालने का कोई उपाय है तो बताइए ना।"

 

सुनीता ने ध्यान से देखा तो प्रदीपवर्मा के पास दूर कहीं एक छोटी बिंदु जैसा भी मौत दिखाई नहीं पडा। मगर सुदर्शनवर्मा के सिर पर मौत मंडराती हुई दिखाई पडी।

 

"यह सुदर्शनवर्मा जी, आपके बेटे को मौत की चिंता नहीं है। वह भविष्य में महान आदमी बनेगा। लेकिन मुझे अफसोस है, आपकी मौत दो-तीन दिनों में होगी।" सुनीता ने कहा।

 

सुदर्शनवर्मा के साथ उनका प्रमुख ज्योतिषी प्रबोधशर्मा भी आया। उसे यह ज्योतिष अच्छा नहीं लगा।

 

"मैं सुदर्शनवर्मा जी का पुस्तैनी ज्योतिषी हूँ। ऐसा नहीं होगा।" ज्योतिषी प्रबोधशर्मा ने कहा।

 

प्रदीपवर्मा कुछ नहीं कह सका। जमींदार जल्दी वहाँ से वापस आया। सब कामकाज बेटे को सौंप दिया। फिर अपनी पत्नी ममतादेवी को बुलाकर कहा, "दो-तीन दिनों में मेरा देहांत हो जाता है। चिंता मत करो। हमें उस लडकी की जरूरत है जिसने यह सब कहा था। मैं उसे अपनी बहू बनाना चाहता हूँ।"

 

सुदर्शनवर्मा की पत्नी ने कहा, "यह कैसा विचार है? अगर आपका देहांत होता है तो उसे भगवान का निर्णय मान सकती हूँ, लेकिन.."

 

तभी प्रदीपवर्मा भी वहाँ आया तो जमांदार ने अपनी अंतिम इच्छा उससे कही। उसे बताया कि अपने सपने में उस लडकी को इस घर की बहू की तरह देखा था और इससे उसका दिल संतोष से भर गया।

 

आखिर सुनीता को फौरन वहाँ बुलवाया गया और उसकी शादी प्रदीपवर्मा के साथ हो गयी।

 

उसके दूसरे दिन जमींदार का देहांत हो गया।

 

साधु का भविष्य सच हुआ। सुनीता को राजकुमार जैसा पति मिल गया।

 

सुनीता के मुँह से उसकी सारी कहानी सुनकर प्रदीपवर्मा मंत्रमुग्ध सा हो गया।

 

भगवान चाहे तो गरीब से गरीब भी अमीर बनता है। तकलीफों से आदमी का उद्धार होता है।

 

[THE END]

Imprint

Text: Sunakra Bhaskara Rao
Images: Sunakra Bhaskara Rao
Editing: Sunakra Bhaskara Rao
Translation: -
Publication Date: 07-05-2015

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