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Book online «Gyanodaya Hindi BR Raksunn, Fernando Sorrentino [ebook smartphone .txt] 📗». Author Fernando Sorrentino



Gyanodaya Hindi

ज्ञानोदय
(Argentina story)
Fernando Sorrentino

Hindi Translation:
BR Raksunn 

 

वह एक ईमानदार भिखमंगा था। एक दिन वह एक बडी इमारत के सामने खडा हुआ। उसने दरवाजा खटखटाया। बावर्ची आया, दरवाजा खोलकर पूछा, "बोलिये महोदय ! मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ?"

 

"दान, भगवान की दया का प्रतिरूप!" भिखमंगा ने कहा।

 

"इसे मैं अपनी मालकिन को पहुँचा दूंगा!" बावर्ची ने कहा।

 

वावर्ची ने अंदर जाकर, भिखमंगे की बातें मालकिन को पहुँचा दीं। मालकिन कंजूस थी। फिर भी भिखमंगे पर

उसके मन में दया उपजी।

 

"जरेमिया, उस अच्छे आदमी को एक रोटी दो, बस एक। कल की रोटियों से एक!" मालकिन ने कहा।

 

जरेमिया को मालकिन पर विशेष भक्ति थी, वह जो कहे वही वह करता है। एस लिये सब रोटियों में जो ज्यादा सूखी बासी थी, उसे लेकर वह बाहर आया। उसे भिखमंगे को दिया।

 

"ये लो, मेरी मालकिन का उपहार!" बावर्ची ने कहा।

 

बावर्ची की बातों में पहले की इज्जत नहीं थी। मगर भिखमंगे का ध्यान इस पर नहीं गया।

 

"भगवान की दया आप लोगों पर हमेशा रहेगी। बहुत बहुत धन्यवाद!" भिखमंगे ने संतोष से कहा।

 

जरेमिया ने अंदर जाकर भारी ओक का दरवाजा बंद कर दिया। भिखमंगे ने सूखी रोटी को कांख में

दबाकर वहाँ से निकल पडा। वह रात और दिन जहाँ बिताता था, उस खाली जगह पर आकर, एक पेड

की छांव में बैठ गया। उस सूखी रोटी को थोडा थोडा कुतरकर खाने लगा। वह बहुत भूखा था, इस लिये

रोटी बहुत स्वादिष्ट लगी। इस तरह खाते समय दांतों के नीचे कुछ ठोस पदार्थ पडा। उसे कोई पत्थर

समझकर मुँह से बाहर निकाला।

 

उसे बडा अश्चर्य हुआ। वह एक सोने की अंगूठी थी। हीरे और जवाहरातों से जडी हुई बहुकीमती अंगूठी।

इतनी कीमती अंगूठी को जिस ने खो दिया, वह बडा दुखी होगा। इस विचार से भिखमंगा तिलमिला उठा।

 

एक मिनट उसके मन में एक विचार आया कि इस अंगूठी से उसके बाकी दिन आनंद से कट जाएँगे। लेकिन दूसरे ही क्षण उसे अपने विचार पर लज्जा हुई। दूसरों की संपत्ति पर आशा करना मौत के समान है न!

 

उसके अंदर जो ईमानदारी है, उसने उसे प्रबोध किया कि इस अंगूठी के मालिक का पता लगाकर, इसे उसके पास पहुँचा देना अपना कर्तव्य होगा। तब तक उसे नींद और भूख की चिंता नहीं होनी चाहिए।

 

उसने अंगूठी को ध्यान से देखा तो उसके अंदर जे.एक्स के अक्षर खुदे हुए दिखाई पडे। भिखमंगा होशियार था

और वह आलसी बिलकुल नहीं था। वह तुरंत नजदीक में स्थित एक स्टोर के पास गया और टेलीफोन बुक मांगकर, उसमें नाम ढूँढने लगा। पूरे टाउन में एक्स घराने के नाम से सिर्फ एक ही परिवार था। वह क्सोपैना परिवार था।

 

संतोष के साथ भिखमंगा क्सोपैना परिवार को ढूँढते हुए निकल पडा। उस पते के घर को देखकर उसे बडा आश्चर्य हुआ। क्यों कि यह वही घर था जहाँ उसे वह सूखी रोटी मिली थी जिस में यह अंगूठी थी। उसने आनंद से उस घर का जदरवाजा खटखटाया।

 

जरेमिया बाहर आया और उसने पूछा, "बोलिये महोदय ! मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ?"

 

"थोडी देर पहले आप ने मेरे ऊपर दया से जो रोटी का टुकडा दिया था, उस में मुझे यह अंगूठी मिली। इसे वापस करने के लिए मैं आया।" भिखमंगा ने कहा। उस ने अंगूठी जरेमिया को दे दी।

 

"इसे मैं अपनी मालकिन को पहुँचा दूंगा!" बावर्ची ने कहा और अंगूठी को लेकर वह अंदर चला गया।

 

बावर्ची ने मालकिन को भंखमंगे की बात पहुँचा दी ओर अंगूठी भी दे दिया।

 

"मेरे भाग्य से यह फिर मेरे पास आ गई। इसे मैं ने तीन दिन पहले खो दिया। उस दिन आटा गूँथते समय उसमें अटक गया होगा, अब मिल गया। इसके अंदर मेरे नाम के अक्षर हैं। जेएक्स का मतलब है मेरा नाम, जोसरमिना क्सोपैना। आज मैं बहुत खुश हूँ।" मालकिन ने संतोष से कहा।

 

फिर मालकिन ने जरेमिया की तरफ देखकर कहा, "वह भिखमंगा अच्छा है। वह पुरस्कार में जो भी मांगे, दे देना। हाँ, सवधान रहना कि वह पुरस्कार बहुमूल्य का न हो। ।"

 

मालकिन की बातों का मतलब स्पष्ट था। जरेमिया बाहर आया और भिखमंगे से कहा, "आपके अच्छे काम पर मालकिन बहुत खुश हैं और आपको पुरस्कार देना चाहती हैं। बताइए, आपको कौन सा पुरस्कार चाहिए?"

 

भिखमंगे का दिल संतोष से भर गया, जैसे उसे ही अपनी खोई हुई अंगूठी मिल गई हो। उसकी आँखों से आँसू झर रहे थे। उस ने कहा, "मुझे एक सूखी रोटी दिजए। यही मेरे लिए पुरस्कार है।"

 

जरेमिया ने जाकर मालकिन को उसकी बात पहुँचा दी। मालकिन ने कहा, "जाओ, उसे उसका पुरस्कार दे दो।"

 

जरेमिया अपनी मालकिन की शाबाशी की प्रतीक्षा करता था। इस लिए वह एक सूखी बासी रोटी निकालकर, उसे भिखमंगे को पुरस्कार में दे दिया।

 

"ये लो पुरस्कार!" जरेमिया ने कहा।

 

"भगवान की दया आप लोगों पर हमेशा रहेगी। बहुत बहुत धन्यवाद!" भिखमंगे ने संतोष से कहा।

 

भिखमंगे ने आनंद से अपना पुरस्कार को कांख में दबाकर वहाँ से चल दिया। वह रात और दिन जहाँ बिताता था, उस खाली जगह पर आकर, एक पेड की छांव में बैठ गया। उस सूखी रोटी को थोडा थोडा कुतरकर खाने लगा। वह बहुत भूखा था, इस लिये रोटी बहुत स्वादिष्ट लगी। इस तरह खाते समय दांतों के नीचे कुछ ठोस पदार्थ पडा। उसे कोई पत्थर समझकर मुँह से बाहर निकाला।

 

उसे बडा अश्चर्य हुआ। वह एक सोने की अंगूठी थी। हीरे और जवाहरातों से जडी हुई बहुकीमती अंगूठी।

 

उस अंगूठी के अंदर जेएक्स अक्षर खुदे हुए थे। उसे मालूम था कि जेएक्स का मतलब है जोसरमिना क्सोपैना।

 

भिखमंगे ने अंगूठी ले जाकर जोसरमिना क्सोपैना को पहुँचा दिया। पुरस्कार में एक सूखी बासी रोटी लेकर खुशी-खुशी वापस आया।

 

फिर उस सूखी बासी रोटी में एक अंगूठी उसे मिली। भिखमंगे ने फिर उसे उसके मालकिन को पहँचा दिया।

 

अंगूठियों का यह भाग्य भिखमंगे को जीवन भर ढूँढता आया। वह रोज अंगूठी ले जाकर जरेमिया को देता और पुरस्कार में एक सूखी रोटी ले आता था।

 

इस तरह भिखमंगा जितने दिन जिंदा रहा, उसे उस घर से रोटियाँ मिलती ही रहीं। वह भूख की चिंता के बिना जीवन भर आनंद से रहा।

 

_THE END_

Imprint

Text: Sunkara Bhaskara Rao
Images: Sunkara Bhaskara Rao
Editing: Sunkara Bhaskara Rao
Translation: Sunkara Bhaskara Rao
Publication Date: 07-19-2015

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