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Book online «Bhagavan Ko Bhojan Hindi, BR Sunkara [general ebook reader .txt] 📗». Author BR Sunkara



Bhagavan Ko Bhojan

Bhagavan Ko Bhojan
BR Sunkara

 

A Hindi story about a old woman who wants to feed the God she worships and God also has decided to accept the food from her and he promises that he will come tomorrow. What happened next? Why the old woman thinks that the breach of promise (breaking a sworn assurance) has been happened?

 

एक वृद्धा थी। वह अकेली थी। वह ठीक से देख भी नहीं सकती थी। वह गाँव के बाहर अपनी झोंपड़ी में रहती थी। वहीं कुछ फूलों के पौधे लगाकर, उन फूलों की मालाएँ मंदिर के पास बेचती थी। उससे मलने वोले कुछ पैसों से ही अपनी जीविका बिताती थी। भगवान के प्रति उसकी बड़ी श्रद्धा और भक्ति थी। रोज भगवान की पूजा करने के बिना वह कुछ खाती पीती नहीं थी।

 

उसके मन में भगवान को अपने हाथों से एक बार भोजन खिलाने की बड़ी लालसा थी। इसके लिए कुछ महीनों से उसने कुछ पैसे बचाकर रखे। उस रकम से अच्छा खाना बनाकर भगवान को खिलाना उसका विचार था।

 

एक दिन उसके सपने में भगवान दिखाई पड़े तो वृद्धा ने अपने मन की इच्छा प्रकट की।

 

“भगवन,  मैं अपने हाथों से खाना बनाकर अपको खिलाना चाहती थी। आप सेरे हाथों से खाना खाने के लिए कब आएंगे?“ वृद्धा ने कहा।

 

“मैं कल दुपहर को तुम्हारे घर आकर तुम्हारे हाथों का खाना खाऊँगा।“ भगवान ने वृद्धा को वचन दिया।

 

सपने में भगवान का वचन पाकर वृद्धा बहुत खुश हुई। दूसरे दिन तड़के ही उठकर वही नदी में नहाकर आयी। भगवान की पूजा करके, कुछ खाये-पिये बिना ही वह बाजार में गई। अच्छा खाना बनाने के लिए आवश्यक भोजन की सामग्री उसने खरीद ली।

 

सीधे घर को आकर वृद्धा खाना बनानॆं में लग गई। बड़ी श्रद्धा से उसने खाना बनाया। भगवान आकर उसके हाथों से खाना खा ले, फिर स्वयं खायेगी, यूं सोचकर वह भगवान के लिए प्रतीक्षा करने लगी।

 

भगवान नहीं आये। वृद्धा को जोर की भूख लग रही थी। भगवान के लिए वह प्रतीक्षारत थी। प्रतीक्षा की और प्रतीक्षा की। इस प्रतीक्षा में ही उसे निद्रा आई। उसी समय घर के बाहर किसी वृद्ध की आवाज सुनाई पड़ी।

 

“माता, जोर की भूख लग रही है। खाने को कुछ खिलोओ माता ” वृद्ध की आवाज में स्हरन थी।

 

वृद्धा ने बाहर आकर देखा। अपनू आंगन में एक वृद्ध और वृद्धा खडे थे। उनके बदन पर चीथड़ें थीं। कई दिनों की भूख से उनका पेट और पीढ एक जैसे लग रहे थे। उन्हें देखते ही वृद्धा का मन विकल हो उठा। वृद्धा ने सोचा, ‘भगवान आयेंगे तो उनको और एक दिन आने के लिए कहूंगी। पहले उनको खाना इन्हें खिलाऊँगी।”

 

“महानुभाव, आपके लिए खाना गरम-गरम तैयार है। आप नहा धोकर आइय़े।” वृद्धा ने कहा।

 

वृद्धा ने घर के अहाते में रहा कुँआ दिखाया। उर में रहे कुछ धुले हुए कपड़े उन्हें दिये। वे बूढ़े कुँए के पास जाकर नहाकर धुले कपड़े पहनकर आये।

 

उन्हें केले के पत्तों पर खाना परोसकर वृद्धा ने उन्हें खाने के लिए कहा।

 

“माता, तुम भी आकर हमारे साथ खाओ। लगता है, तुम ने भी अब तक कुछ खाया नहीं।” वृद्ध ने कहा।

 

“आप पहले खाइये। बाद में मैं खाऊँगी।” वृद्धा ने कहा।

 

मगर वे नहीं माने। इस लिए वृद्धा भी उन के साथ खाना खाया। उस दिन का खाना उसे अमनृत जैसे बहुत अच्छा था। यह तो भागवान का खाना है, इसी लिए यह इतना स्वादिष्ठ है – वृद्धा ने सोचा।

 

खाना खाने के वाद दोंनो वृद्धा और वृद्धा दम्पतियों ने वृद्धा को आशीर्वाद दिये और वहाँ से चले गये।

 

भगवान के लिए दुबारा खाना बनाने के लिए वृद्धा के पास पैसे नहीं थे। उसने सोचा कि भगवान खाना खिलाने का वचन देकर उसने वचन भंग किया। इस बात पर वह दुखी थी। उसने सोचा कि भगवान भी आने का वचन देकर नहीं आये, उन्हों ने भी वचन भंग किया है।

 

उस दिन रात को सपने में भगवान दिखाइ पड़े तो वृद्धा ने रोते हुए कहा, “भगवन, मुझे क्षमा कीजिए। मुझ से वचन भंग हुआ। आपके लिए खाना बनाकर दूलरों को खिला दिया। उनकी बेहाल हालत को देखकर मुझ से रहा नहीं गया।” वृद्धा ने कहा।

 

इस पर भगवान हँस पड़े। उन्हों ने कहा, “अगर वचन भंग हुआ तो क्या मेरी ओर से यह नहीं हुआ?”

 

“भगवन, आप नहीं आए तो कारण हो सकता है। अपके अनेक भक्त हैं, आपके अनेक काम हैं। आज नहीं और एक दिन आ सकते हैं। आपको अच्छा खाना खिलाने के लिए मुझे और दो तीन महीने इंतजार करना होगा, तभी मैं इतना पैसा फिर से जुटा सकती हूँ। “

 

वृद्धा ने जब यह कहा तो भगवान की आँखें पसीज गईं।

 

“माता, कल तुम ने मुझे मेरी देवी को बढ़िया खाना खलाई हो। मैं और मेरी देवी कल तुम्हारे घर आये और बढ़िया खाना तुमने हमें खिलाया है। इस लिये हम में से किसी की ओर से वचन भंग नहीं हुआ। “भगवान ने इसना कहकर वृद्धा के स्वप्न से अंतर्द्धान हो गये।

 

_The END_ 

Imprint

Text: Sunkara Bhaskara Rao
Images: Sunkara Bhaskara Rao
Editing: Sunkara Bhaskara Rao
Translation: -
Publication Date: 07-13-2015

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