Kitna Pyar Hindi, BR Sunkara [different e readers txt] 📗
- Author: BR Sunkara
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कितना प्यार
बीआर सुंकरा
प्यार का हमेशा नतीजा प्यार होता है. इस लिये प्यार कभी बुरा नहीं होता. मगर प्यार में स्वार्थ होता है. प्यार में धोखा होता है. प्यार में कपट होता है. प्यार हमेशा स्वच्छ और साफ होना चाहिये, मगर ऐसा नहीं होता। कुछ संदर्भ ऐसे होते हैं जहां लगता है कि भरपूर प्यार मिल रहा है, मगर सच तो कुछ अलग होता है। इस धोखे से भरे प्यार का परिणाम अच्छा नहीं होता. असली प्यार को कोई भी बुरा नहीं कहता. प्यार के नाम पर होने वाले धोखे को कौन प्यार कहेगा?
हम एक दिन मेरीना बीच में बैठे थे. बीच यानी सागर तट. मेरे साथ मेरा दोस्त डा. रघु था. बीच में कई लोग थे. क्योंकि यह रविवार की एक सुंदर शाम थी. हम देख रहे थे कि लोग बीच में शाम का आनंद ले रहे थे. बीच में हरेक का अपना अपना अप्रकट काम था.
कोई लोग सागर के पानी में जाकर नहाना चाहते थे. कोई तो उफनती लहरों में जाकर अपने पैरों के नीचे से फिसलने वाले पानी को देखकर आनंद ले रहा था. कोई और अपने बच्चों को रंगीन गुब्बारे खरीदकर देने में लगा हुआ था.
सागर तट पर घोड़े दौड़ रहे थे. बच्चे घोड़ों पर बैठने के लिये रो रहे थे. माँ-बाप बच्चों को घोड़ों पर बिठाकर टहला रहे थे. कुछ लोग पैसे खर्च करना नहीं चाहते, इस लिये बच्चों को मनाने में तकलीफें उठा रहे थे. कुछ और बहाना करके उन्हें चुप करने की कोशिश कर रहे थे.
एक औरत ने एक घोड़े वाले को रोककर पूछा, "कितना पैसा ले रहे हो?"
"घोड़े पर एक बार की सवारी के लिये हम पचास रुपये लेते हैं माँ जी! " घोड़ा वाला बोला.
"पचास रुपये ज्यादा है ना? पच्चीस रुपये लेना बेटा!" उस औरत ने कहा.
"पचास रुपये से कम नहीं लेते, हमें भी जीना है ना, सब के दाम बढ़ गये हैं न माँ जी!" घोड़ा वाला इनकार के स्वर में बोला.
"सुंडल...कै मुरुकु.. " एक बूढ़ा कनस्तर हाथ में लेकर चिल्लाते हुए आ रहा था.
सुंडल यानी पकाये गये मटर हैं। कै मुरुकु का मतलब है हाथ से बनाये गये twisted crunchy स्नैक्स हैं. इस तरह सागर तट पर हर प्रकार की चहल पहल थी.
एक ग्रामीण औरत अकेली बैठी थी. उसका लड़का चार साल का था. वह सुंडल खाना चाहता था. कै मुरुकु खरीदने के लिये अपनी माँ से कहकर जिद कर रहा था, रो भी रहा था. घोड़े पर बिठाने के लिये जिद कर रहा था. उसकी माँ पैसे खर्च करने के लिये तैयार नहीं थी. लड़के को चुप करने के लिये वह बहुत कोशिश कर रही थी.
एक अच्छा आदमी यह सब देख रहा था. उसे लड़के पर उसे बहुत दया आयी. वह एक बूढ़ा था. अच्छे कपड़ों में वह बड़ा दयालू दिखाई दे रहा था.
वह उस औरत के पास बैठा था. उस ने लड़के को प्यार से अपने पास लिया। उसने लड़के को सुंडल खरीदकर दिये.
"ना..ना..सुंडल बच्चे के स्वास्थ्य के लिये अच्छे नहीं हैं..." उस औरत ने मना किया.
"बेटी, एक दिन के लिये बुरा क्या होगा, लड़का है ना, उसे खाने दो." उस आदमी ने कहा.
औरत चुप थी. उस बूढ़े ने उस लड़के को बहुत प्यार दिया. यह सब देखने वाली उस औरत को बड़ा आश्चर्य हुआ.
इस जमाने में भी कुछ लोग कितने अच्छे हैं, ऐसे लोगों को देखने पर मन बहुत खुश होता है - उस औरत ने मन ही मन सोचा.
फिर उस आदमी ने लड़के के लिये कै मुरुकु खरीदकर दिये। बच्चा बड़े संतोष से उसे खाने लगा.
"दादा जी... दादाजी... " कहते हुए वह लड़का उस आदमी के पीछे-पीछे भागने-दौड़ने लगा.
"ना..ना.. " कहते हुए वह औरत उस लड़के को मना करती ही रही. लेकिन उसका कोई फायदा नहीं रहा.
लड़का उस बूढ़े आदमी के पीछे दौड़ता ही रहा.
उस बूढ़े ने लड़के को घोड़े पर सवारी भी करवायी.
ओह... कितना प्यार. वह औरत गदगद हो गयी. शाम हुई. उस बूढ़े आदमी को धन्यवाद देकर वह औरत लड़के को लेकर घर की और लौटी।
घर में पहुँचने पर उसकी माँ ने पूछा, "सागर तट का आनंद भरपूर ले लिया ?"
"हाँ माँ, बहुत आनंद लिया." उस औरत ने कहा।
फिर उस बूढ़े आदमी के बारे में उस औरत ने अपनी माँ को बताया.
उस औरत की माँ ने लड़के के गले में देखा. सोने की चेन जो पचास हजर खर्च करके उसने खरीदी थी, वह चेन गायब थी.
"उस बूढ़े ने कितना प्यार दिखाया? देखा ना? उसने हमारे बबलू के गले की पचास हजार की चेन चुरा ली। तुम कितना अबोध हो बेटा, प्यार तो मुफ्त में नहीं मिलता है न?..." उसकी माँ ने बेटी को समझाया.
रियलली.. कितना प्यार... पचास हजार लेने पर इताना भी प्यार नहीं दिखाये तो कैसा ?
_THE END_
Imprint
Text: Sunkara Bhaskara Rao
Images: Sunkara Bhaskara Rao
Editing: Sunkara Bhaskara Rao
Translation: -
Publication Date: 06-23-2015
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