readenglishbook.com » Romance » शायद यही है प्यार, अभिषेक दळवी [best novels to read for students .TXT] 📗

Book online «शायद यही है प्यार, अभिषेक दळवी [best novels to read for students .TXT] 📗». Author अभिषेक दळवी



1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12
Go to page:
मैं मानूंगा कि तुम्हें पापा की फिक्र है। पापाने कहा।

" ठीक है। जैसा आप कह रहे है वैसा ही होगा।" मैंने कुछ देर सोचने के बाद जवाब दिया।

थोड़ा बहुत खाना खाकर मैं बाहर आ गया। रात के दस बज चुके थे। हमारे बंगले से कुछ ही दूरी पर कॉलोनी का गार्डन था। मैं गेट खोल कर अंदर आ गया। गार्डन में छोटी छोटी लैंप की रोशनी चारों तरफ फैली हुई थी। आसपास शांती छाई हुई थी , पौधों से फूलों की खुशबू आ रही थी , गार्डन के बीचों बीच शिवलिंग के आकार का वॉटर फाउंटेन था जहां आठ फीट ऊँचा शिवलिंग और उस पर बरसनेवाला पानी के फवारे , लैंप की रोशनी में वह सब कुछ बहुत खूबसूरत लग रहा था। मैं पड़ोस के झूले पर आकर बैठ गया। वह झूला आवाज करते हुए आगे पीछे झूलने लगा। मेरी यह बचपन की आदत थी। मुझे जब गुस्सा आता था , जब मैं नाराज होता था या फिर उदास होता था तब मैं इस झूले पर आकर बैठ जाता था।

अब भी वही बैठे हुए उसी के बारे में सोच रहा था जिसके बारे में पापाने थोड़ी देर पहले मुझसे बात की थी। भाई पूरी तरह से गलत है ऐसा मुझे नहीं लग रहा था। शायद उसका रास्ता गलत होगा पर इरादा सही था। संदेशभाई के जिंदगी का सवाल था। एक लड़की से प्यार करते हुए किसी दूसरी लड़की से शादी करके वह खुश रह पाता या नहीं यह कहना मुश्किल है। शायद उसने जो कुछ भी किया यह उसके लिए सही था मगर उसके और मेरे भाई की वजह से पापा को बहुत परेशानी हुई थी। आज पहली बार मैं उनको इतना नाराज देख रहा था। मैंने आज तक पापा की हर एक बात बिना सवाल के मानी थी और आज जब उनको मेरी जरूरत थी तब उनको दिया हुआ वादा निभाना बहुत जरूरी था। कुछ देर वहीं बैठने के बाद मैं घर पर आ गया। पर उसके बाद दो तीन दिन मुझे बार बार उसी की याद आ रही थी। हाँ वही ' स्मिता जहाँगिरदार '

माँ हमेशा मुझसे कहती थी।

" कोई चीज जब हमसे दूर चली जाती है। तब हमारे दिल में उस चीज की दिलचस्पी और बढ़ जाती है।"

मेरे साथ भी अब ऐसा ही हो रहा था। मैंने जब स्मिता को सेमिनार हॉल में सबके सामने ना डरते हुए स्पीच देते हुए देखा था तब से उसकी तरफ देखने का मेरा नजरिया बदल गया था। मैं बहुत इंप्रेस हुआ था, वह मुझे बहुत पसंद आने लगी थी। हर रोज रात को सोते वक्त और सुबह उठने के बाद उसी की याद आती थी। हम जब फर्स्ट यीअर में थे तब उसके लेक्चर्स के जल्दी खत्म हो जाते थे। वह उसकी फ्रेंड्स के साथ कैंटीन में आकर बैठती थी। कैंटीन के पड़ोस में ही हमारी प्रैक्टिकल लैब थी। प्रैक्टिकल के एंडिंग में मैं खिडकी के पास आकर खड़ा हो जाता था। मंडे और ट्यूजडे के प्रैक्टिकल ग्राउंडफ्लोर के लैब में होते थे। तब मुझे वह दिखती थी। ट्यूजडे को कॉलेज खत्म होने के बाद पूरे हफ्ते भर मैं मंडे के प्रैक्टिकल का इंतजार करते रहता था। मुझे प्रैक्टिकल के वक्त बाहर देखते हुए लैब असिस्टेंट ने पकड़ा था और मेरी कंप्लेंट भी की थी। पर मैंने हार नहीं मानी थी। मैं कुछ न कुछ वजह बताकर खिड़की के पास जाता था सिर्फ उसे देखने के लिए। स्मिता को देखकर मैं अपने आप रिफ्रेश हो जाता था उसका चेहरा , उसकी मुस्कुराहट , उसका शरमाना यह सब याद करते ही मेरा हफ्ता बीत जाता था। उन दो दिनों की वजह से बाकी के पांच दिन पूरे मजे में बीतते थे। इतना ही नहीं चार हफ्ते पहले छुट्टी में घर आते वक्त छुट्टी के टाइम उसे नहीं देख पाऊंगा यह सोचकर मैं कितना निराश हुआ था यह अब भी मुझे याद है। पर अब यह सब याद करके कुछ फायदा नहीं था। पापा को किए वादे अनुसार स्मिता और उसकी यादों को भूल जाना मेरा फर्ज था।

 

 

 

मेरी छुट्टियाँ खत्म होने के बाद मैं वापस पूने आ गया। कॉलेज भी शुरू हो गया। कुछ डिप्लोमा स्टूडेंट्सने हमारे साथ सेकेंड ईयर में न्यू एडमिशन ले लिया उनमें तीन लड़के और दो लड़कियां थी। वह तीन लड़के हमारे साथ ज्वाइंट हुए। उन डिप्लोमा स्टूडेंट में से विशाल और आदित्य को होस्टल में हमारे रूम के बगल की रूम मिल गई। वह दोनों भी विकी के जैसे ही बिंदास थे। हर साल की तरह इस साल भी फ्रेशर्स पार्टी की तैयारी शुरू हो गई। इस सब में विकी बहुत इंटरेस्ट ले रहा था। पार्टी के लिए हॉल के डेकोरेशन की जिम्मेदारी हम पर थी इसलिए हमने ग्रुप बनाए थे। स्टेज डेकोरेशन की जिम्मेदारी हमारे ग्रुप पर आ गई। हमने हॉल का डेकोरेशन अच्छी तरह से कर भी दिया पर वह विकी को बिल्कुल भी पसंद नहीं आया। उसने तय किया था वैसे डेकोरेशन उसे चाहिए था फिर हमने किया हुआ डेकोरेशन निकाला और रात के आठ बजे तक कॉलेज में रुककर जैसा विकी को चाहिए था वैसा डेकोरेशन तैयार किया। पार्टी की एंकरिंग विकी ही करनेवाला था उसके लिए उसने बहुत मेहनत की थी।

पार्टी के एक दिन पहले रात के एक बजे मेरी नींद टूटी। मैंने देखा इतनी रात होने के बावजूद भी विकी एंकरिंग की ही प्रैक्टिस कर रहा था। यह सब कुछ देख कर उसके दिमाग में कुछ चल रहा है ऐसा मुझे शक होने लगा। एग्जाम के टाइम भी विकीने बारह बजे तक पढ़ाई नहीं की थी और अब सिर्फ एंकरिंग के लिए वह इतनी मेहनत ले रहा है यह देखकर कुछ तो गड़बड़ है यह मेरे समझ में आ गया था।

" विकी रात के एक बज चुके है। यह सब जो कर रहे हो उसकी वजह बताओगे ?" मैंने पूछा।

" कुछ नहीं अभी.... बस ऐसे ही कर रहा हूँ। एक्चुअली दो साल पहले आखरी बार एंकरिंग की थी। अब थोड़ा डर लग रहा है इसीलिए प्रैक्टिस कर रहा हूँ।" उसने मुझे झूठा जवाब देने की कोशिश की।

पर मैं भी ऐसे हार मानने वालों में से नहीं था। वह जब वॉशरूम के लिए गया तब मैंने उसके एंकरिंग स्क्रिप्ट देख ली उसने ऑलमोस्ट तीन पेज की स्क्रिप्ट लिखी थी। उसने उसमें डायलॉग से लेकर शेरो शायरी तक सब कुछ था। मैंने उसकी स्क्रिप्ट छिपा दी, वह वॉशरूम से जब वापिस आया तब स्क्रिप्ट ढूंढने लगा और जब वह उसे कहीं पर भी नहीं मिली तब वह अपने आप मेरे पास आ गया।

" अभी, मेरी स्क्रिप्ट कहां है ?" उसने पूछा।

" तुम्हारे स्क्रिप्ट के बारे में मुझे कैसे पता होगा ? वह तो तुम्हारे पास होनी चाहिए।"

" अभी देना यार....अब मैं मजाक करने के मूड में बिलकुल भी नहीं हूँ।"

" मुझे पहले डिटेल में बताओ इतनी मेहनत क्यों चल रही है ?"

" मैंने बताया ना...।"

" वह सच नहीं है। सच बताओ बात क्या है ?"

दो मिनट रुककर वह बोलने लगा।

" ठीक है तो सुन। न्यूटनबाबा की स्टोरी पता है ना ?" उसने पूछा।

" कौन न्यूटनबाबा ?"

" अरे आयझॅक न्यूटन।"

" उसका क्या ?"

" जिस तरह न्यूटन को सेब के पेड़ के नीचे बैठकर ग्रेविटेशनल फोर्स के बारे में पता चला उसी तरह कुछ दिन पहले मुझे इस रूम के सीलिंग फैन नीचे सोकर एक बात समझ में आ गई है।" उसने कहा।

विकी कभी कभी ऐसे कॉमेडी लैंग्वेज में बात किया करता था।

" ओह माई गॉड.....विकी ऐसी कौन सी बात समझ में आ गई ?" मैंने उसी भाषा में उससे पूछा।

" मैं ऐसे एक दिन सीलिंग फैन के नीचे बेड पर लेटा था। तब मेरा ध्यान खिड़की की तरफ गया और वहां मुझे क्या दिखा पता है।"

" क्या दिखाई दिया ?"

" चड्डियाँ ....हम तीनों की, खिड़की पर सूख रही थी।"

" विकी तुम्हारा प्वाइंट क्या है ? सीधे सीधे बताओ।" मैंने थोड़ा कन्फ्यूज हो कर पूछा।

" मुझे बता हरसाल बारिश के टाइम तुम्हें किस बात का टेंशन रहता है ?"

" मेरी चड्डी मतलब मेरे कपड़े सूखेंगे या नहीं। इस बात का थोड़ा बहुत टेंशन आता है।" मैंने ईमानदारी से जवाब दिया।

" मेरा और देव का भी यही प्रॉब्लेम है। मैं अब छुट्टियों में मेरे बी एस्सी और बी कॉम करनेवाले दोस्तों से मिला। उन लोगों को बारिश के वक्त गर्लफ्रेंड को लेकर डेट पर कहा जाना है ? उसके साथ कौनसे ढाबे पर रुकना है ? गर्लफ्रेंड को मिलने के लिए घर से निकलते वक्त घरवालों को क्या बताना है ? इस बात का टेंशन रहता है। मुझे बता हम इंजिनियरिंगवालोंने ही क्या पाप किया है ? हम और कितने साल सिर्फ चड्डी सुखाने का टेंशन लेकर घूमते रहेंगे ? कुछ साल बाद जब हमारे बच्चे में पूछेंगे, की आपने कॉलेज में जाकर क्या किया ? तो क्या जवाब देंगे " हमने सिर्फ चड्डियां सुखाई ।"

" विकी तुम क्या कह रहे हो ? मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा। पहले अपना पॉइंट क्लियर करो।" मैंने फिर कहा।

" अभी, फर्स्ट यीअर में मैं नहीं कर सका पर अब मैं लड़की पटाऊंगा। तू सिर्फ देखता जा कल ऐसे एंकरिंग करता हूँ ना कि सब फ्रेशर्स लड़कियां इंप्रेस होनी ही चाहिए। किसी को भी प्रपोज करने के बाद वह झट से हाँ बोलनी चाहिए।" विकी इतने कॉन्फिडेंटली कह रहा था।

उसका कॉन्फिडेंस देखकर मुझे ऐसा लगा की पार्टी में कम से कम दस बारा लड़कियों से तो आसानी से फ्रेंडशिप कर लेगा पर बेचारे की किस्मत ही खराब थी। पार्टी के पहले हमने फ्रेशर स्टुडेंट्स की लिस्ट देखी थी। फर्स्ट यीअर के हालात भी हमारे जैसे ही थे। उनके क्लास में भी सत्तर लड़के और बस तीन ही लड़कियां थी। उन तीनों में से दो अपसेंट थी। एक लड़की कॉलेज आई थी पर बाकी लड़किया ना होने की वजह से वह पार्टी अटेंड किया बिना ही चली गई। लड़कियों को इंप्रेस करने के लिए विकीने बहुत मेहनत की थी मगर पार्टी में एक भी लड़की नहीं थी, हम सारे सिर्फ लड़के ही थे। उस दिन इसी बात को लेकर हमने विकी का बहुत मजाक उड़ाया। वह बेचारा इतना निराश हुआ था कि रात को मेस में खाना खाने के लिए भी नहीं आया फिर आदित्य बाइक से जाकर उसके लिए पार्सल लेकर आ गया।

आदित्य और विशाल के पास बाइक थी। वह दोनों हमारे ग्रुप में थे इसलिए हम लोग बाइक से हफ्ते में कम से कम दो बार कहीं ना कहीं घूमने जाते थे। वैसे रात को साढ़े दस बजे के बाद हॉस्टल से बाहर जाना अलाउड नहीं था। पर दो सिगरेट देने के बाद वॉचमैन हमें रात को देर से आनेपर पिछले गेट से हॉस्टल में लेता था। हमारे साथ डिप्लोमा का रतन नाम का और एक लड़का था। उसका घर हमारे कॉलेज के पास ही के एक गाँव में था। गाँव में उसकी खेती थी और खेत की जमीन पर एक घर था। वह उसके चाचा का था पर वह मुंबई में रहने की वजह से वह घर खाली ही रहता था। हम रात को वहांपर जाते थे। हम मतलब देव को छोड़कर बाकी हमारा पूरा ग्रुप, क्योंकी हम जब देव को आने के लिए कहते थे तब देव का एक ही जवाब रहता था।

" हमारे माँ बाप इतने दूर हमें पढ़ने के लिए भेजते हैं ना उन्हें अगर पता चल गया कि हम यहां पर आकर ऐसी मस्ती कर रहे तो उन्हें बुरा लगेगा।"

यह जवाब सुनकर आप देव को सीधा साधा समझ रहे हैं तो यह आपकी गलतफहमी है। क्योंकी हमारे साथ ना आने की देव की वजह अलग ही थी।

एक बार देव हमारे साथ रात को बाहर आया था। उस रात हम हॉस्टल के पास ही एक बैंक्वेट हॉल में गए थे। वहां एक मैरिज रिसेप्शन चालू था। वहां हमें आदित्य और विशाल लेकर गए थे। उन दोनों के हिसाब से हॉस्टल पर रहनेवाले लड़कों ने हर रोज मेस में खाना खाने के बजाए कभी कभी ऐसे रिसेप्शन और पार्टी का भी फायदा उठाना चाहिए। हम उन्हीं कि बात सुन कर वहां गए थे। विशाल इतना कमीना था वह मैरिज कपल को एक खाली प्रेजेंट पॉकेट भी गिफ्ट देकर आया। लड़की के बापने पॉकेट देते वक्त विशाल को देखा तब वह जरूर कनफ्यूज हुआ होगा कि यह लड़का हमारी तरफ से है या दूल्हे की तरफ से ? वहां से निकलकर हॉस्टल के पास पहुँचने तक रात के बारह बज गए। वॉचमैनने हमें हर रोज की तरह पिछले

1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12
Go to page:

Free e-book «शायद यही है प्यार, अभिषेक दळवी [best novels to read for students .TXT] 📗» - read online now

Comments (0)

There are no comments yet. You can be the first!
Add a comment