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Book online «trasadi, neha Pandey Pant [good books for high schoolers .txt] 📗». Author neha Pandey Pant



trasadi....

 

त्रासदी

मैं रोया हर आईने से कि सोचा ना था, ये मंजर पाँउगा ।

जँहा जलते थे सैकड़ो दीप उसे एक दिऩ यूं तार तार होता पाँउगा ।

ना जाने क्या कुसूर था मेरा, जो नाप भी ना पाया अपनी जिंदगी।

बस यूँ ही चल पड़ा एक खुशी की लहर लिए मन मे।एक आस्था की किरण लिए मन मे।

यूँ तो चोटी को छू जाने का गुरूर था मुझे।

धाम मे पहुँच जाने का शुकुन था मुझे।

वादियाँ महक रही थी, खुशियाँ चहक रही थी।

हर पल हर घड़ी रोशनी चमक रही थी।

हर उजाले में मेरा सपना जुड़ा था।

मानो किस्मत का तारा मुझ पे मुड़ा था।

उन लाखों लोगों में मैं भी शामिल था।

पर सोचा ना था यूँ अंधेरा छाएगा।

मेरा हर सपना एक पल में तार तार हो जायेगा।

एक मंजर जो ऐसा अया, कुछ लहराता सा खुद को पाया।

आस-पास ना कुछ नजर आया सिर्फ पानी का खौफनाक मंजर पाया।

कितने लोगो को लड़ते देखा, मौत के डर से बचते देखा।

पर कर ना सका कुछ मैं, बस देखता ही रहा, क्योकीं मैं भी लाचार था।

अपनी जिंदगी को किसी भी तरह से बचाने के लिए तैयार था।

वो कहते है, ना होनी को कोई नही टाल सकता और वो भी वो होनी जिसके लिए मैं खुद जिम्मेदार था।

समझ मे आया तब कि बचा देता अगर एक पेड़ भी कटने से।

तो यूँ आज ना देखता इस तरह मौत को लड़ने से।

पेडं काटे, पहाड़ काटे, यहाँ तक कि नदियों को भी नही बक्शा।

उन पर भी भार लँगवाए बड़े-बड़े बाँध बनवाँए।

हो गयी जब इच्छा पूरी।

चल दिया अपने सपनो कि चाह में तय करने हर धाम़ कि दूरी।

अरे ये तो होना ही था,आखिरकार अब प्रकृति को भी तो रोना था।

देख लिया मैंने ये मेरा रोना तो बस पानी कि बूँद है।

पर प्रकृति का रोना तो लाँखो लोगों कि नींद है।

मैं रोया ...................................................................................

 

नेहा पान्डेय पंत

 

Imprint

Publication Date: 07-20-2013

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